मज़हब..!! कब भला ये पहचानता है!! इश्क़..!! जाति, धर्म से परे जीना जानता है!! आजाद..!! पँछी की भाँति…हर बन्धन से मुक्ति चाहता है!! मोहब्बत..!! खुद का मज़हब, खुद का ही ईमान मानता है!! —–– अगली रचना:- (( Next )) ————– रचनाकार:- सुनिधिचौहान अन्य लेखकों की रचनायें पढ़ने के लिए.. (( क्लिक करें )) अन्य रचनाओं…
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अध्याय ~ 10
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बेवफ़ाई के नग़मे सुना देती हूँ by @Sunidhichauhaan
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